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Tuesday, 21 September 2021

Safar Suhana



सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ

Safar or Travel 
Hum Baat Shuru karta hu Mashoor shayar ki likhi kuch SHAYARI ka sath, ( Comment karka puchya shayar ka naam ).

Zindagi ka safar ho ya City ka safar maza to apno ka sath ata hai, aaj hum baat karta hai Safar ka bare me Hindi ki asan bhasa me kaha to Ghumna. Ghumna bhi Utna jaroori hai jitna Khana, warna Kuwa ka menthak banka reh jaoga. Zindagi chand Lamhat ka liya mili hai Adha zindagi bachpan aur budhapa me kat jati hai Zawani ka kuch pal milta hai safar ka liya.
Haseen wadiya Dilhash darakth, thandi hawaya aur Mausam, Yeh sab Dil ko Lubhaya.
Uth tu safar kar Zindagi hai char din ki maza kar.

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Monday, 20 September 2021

Lucknow Chikan Art : Chikan khaya aur Pehna jata hai Lucknow me.


CHIKAN ART
Lucknow me Chikan khaya jata hai aur pehna jata hai,
Ji janab apna sahi padha hai Chikan khaya aur Pehn jata hai.
Lucknow ki juban me jo methas hai urdu ki adbo adaab hai uska sath Mehakati tehzeeb hai jo Lucknow ki Khubsuarati me Char chand laga deti hai.
Janab hum baat karta hai Lucknow ki Chikan ki, Dhaga ki maheen aur bareek karigari jo hatho se bunai ki jati hai hath ki safai aur tawajju ka sath.
Chikan ka kurta pehna ho aur Tuday Kabab phir kiya kahna janab tan badan khush ho jaeya aur mehka aap, waahh waahh.

Lucknow ki chowk ki patli gali me bahot hai chikan ka fankar, Hath ki bunai dhago ki kurti par nakkashi ka jall. Kapda Georgette ho ya Cotton aur Chiffon, dekhti hai hath ki safai aur karigar ka fankar. Yuh to Bahot se Adaey hai Mashoor  Lucknow ki, phela aap pehla aap.
Lucknow Online Chikan ka kurta, saree suit aur salwar etc. Free Delivery and Easy Return. Khareedna ka Liya Link par clicks kara.

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Sunday, 12 September 2021

Indian Railway : PNR, Reservation, Seat and Schedule.

INDIAN   Railway 
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Check : 
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Monday, 8 February 2021

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Friday, 29 January 2021

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Wednesday, 27 January 2021

बचपन की सुनहरी यादें और बचपन के खेल, तोतली व भोली भाषा

चलो, फिर से बचपन में जाते हैं
खुदसे बड़े-बड़े सपने सजाते हैं
सबको अपनी धुन पर फिर से नचाते हैं
साथ हंसते हैं, थोड़ा खिलखिलाते हैं
जो खो गयी है बेफिक्री, उसे ढूंढ लाते हैं
चलो, बचपन में जाते हैं।

बचपन
जब हम छोटे थे अक्सर मन में ये खयाल आता था कि हम बड़े कब होंगे, पर आज पुनः उसी बचपन में लौट जाने का दिल करता है. तो चलिये आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के द्वारा पुनः बचपन की यादों में लिए चलते है.

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श 


बचपन में… जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे! पर अब… मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई!

तोतली व भोली भाषा
बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।
बचपन का वो दिन और सुहानी रातें
चूरन की गोलियां हंसी मजाक की बातें
ना कोई फासले दिल में ना रिश्तो की दीवार,
होती थोड़ी शैतानियां थोड़ी सी तकरार
ना कोई चिंता भविष्य की ना कोई परवाह
हंसते मुस्कुराते गुजरता था बचपन का हर साल
खबर ना थी धूप की ना शाम का ठिकाना था
बारिश में कागज की नाव और पानी का बौछारा था,
जिंदगी में आगे निकलने की ना होड़ थी
हाथ में पतंग का मांजा और सफेद डोर थी,
वो ताजी हवा,मीठा पानी और वो खुशहाली
वो गन्ने का रस, आम की कैरियां और वो हरियाली
इंद्रधनुष के प्यारे रंग और ध्रुव तारा था
सोच कर देखो जरा बचपन कितना प्यारा था।

वो बचपन क्या था,

जब हम दो रुपए में जेब भर लिया करते थे।
वो वक़्त ही क्या था,
जब हम रोकर दर्द भूल जाया करते थे।
बचपन की यादों को हम भूल नहीं पाते,
चाह कर भी हम उस दिन को वापस ला नहीं पाते,
अगर याद करता है अपने बचपन की शैतानी को तो ये दिल रो पड़ता है,

जब देखते है किसी बच्चे की शैतानी करते हुए तो हमारा दिल भी हंस पड़ता है,
ना होती थी हमें कोई चिंता और नहीं होता था किसी बात का था डर
क्यूंकि करते थे हर वक़्त माता पिता अपने से ज़्यादा हमारी फ़िकर,
वो रिक्शेवाले का रोज़ आकर घर के बाहर आवाज़ लगाना,
फिर कोई ना कोई अच्छा बहाना करके स्कूल ना जाना,
स्कूल मिस हो जाता हमे कोई गम नही होता था

बचपन की सुनहरी यादें और बचपन के खेल

बचपन के खेल – स्कूल से आकर सबका ध्यान एक ही चीज में होता था, कि आज क्या खेल खेला जाएगा, कहीं पढ़ाई के लिए मम्मी जल्दी घर वापस ना बुला ले. बचपन में खेले जाने जाने वाले खेल कुछ इस प्रकार होते थे –


1. छुपन-छुपाई – यह बचपन में खेला जाने वाला सबसे आसान और मजेदार खेल था. इसमे एक साथी दाम देता था और अन्य सब छुप जाते थे, फिर कुछ देर रुककर वह अपने अन्य साथियों को ढूंढता और जो सबसे पहले आउट होता वही अगला दाम देता था. बचपन के इस खेल में कब स्कूल से लौटने के बाद खेलते हुए अंधेरा हो जाता था कुछ पता ही नहीं चलता था. बचपन का यह खेल वाकई में मनोरंजक था.

2. राजा मंत्री चोर सिपाही – घर में चार चिटों पर बनाया हुआ यह खेल घंटों चलता था. इस चार चिट पर राजा, मंत्री चोर और सिपाही लिखा जाता था. और चार अलग – अलग व्यक्तियों को यह चिट उठानी होती थी, इसमें जिसके पास राजा की चिट होती वह कहता मेरा मंत्री कौन. अब मंत्री बने व्यक्ति को चोर और सिपाही का पता लगाना होता था. अगर वह सही चोर और सिपाही बता देता तो उसे मंत्री के 500 अंक मिल जाते वरना उसकी चिट चोर की 0 वाली चिट से बदल दी जाती. और राजा व सिपाही को 1000 व 250 अंक मिलते. इस प्रकार फिर अंत में टोटल कर खेल का विजेता घोषित किया जाता था.

3. घोड़ा बादाम छाई : जहाँ स्कूल की रिसेस होती और सब दौड़ कर मैदान में अपनी अपनी क्लास के बच्चो के साथ जगह बनाते और इस खेल को खेलते. जिसमे जोर जोर से चिल्लाते “घोड़ा बादाम छाई पीछे देखी मार खाई.”

4. खो- खो : इसे तो सभी बहुत ध्यान से खेलते थे, क्यूंकि ये कॉम्पिटिशन में आने वाला खेल जो होता था. साल के शुरू में ही हर क्लास की टीम तैयार की जाती थी, जिसमे सभी बहुत मेहनत करते थे.


5. पतंग – उन रंग बिरंगी डोरियों में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों से आसमान भी खूबसूरत सा लगने लग जाता था. वो अपनी पतंग को दूर आसमान में सबसे ऊपर पहुंचाने की चाह और इसके कटने पर दूर तक दौड़ लगाना भी अजीब था. अब आज जब थोड़ी दूर चलने पर सांस फूलने लगती है तब बचपन की वो पतंग के पीछे की लंबी दौड़ पुनः याद आने लगती है, जो चंद रुपयों की पतंग के लिए बिना थके लगाई जाती थी.


आपको याद होंगी स्कूल लाइफ से जुड़ी प्यारी यादें

 यानी की ज़िदंगी का सबसे खूबसूरत पड़ाव, जिसकी यादें हर कोई अपने दिल में संजोकर रखना चाहता है।

यूं तो बचपन में हम सभी चाहते हैं कि हम जल्दी से बड़े हो जाएं लेकिन बड़ होकर ये एहसास ज़रूर होता है कि बचपन से खूबसूरत और कुछ नहीं हो सकता। 

वो बचपन जब सुकून और हंसी हमारे सबसे पक्के दोस्त होते हैं। जब हम बिना बात खिलखिलाकर हंस भी लेते हैं और छोटी सी बात पर सबसे आगे आंसू भी बहा लेते हैं। बचपन में ख्वाहिशे, फरमाइशे, ज़िद सब अपनी होती हैं। यूं तो बचपन से जुड़ी हर याद ही खास होती है लेकिन इसमे सबसे खास होती है स्कूल लाइफ से जुड़ी यादें, जो आज भी हम सभी के दिल के किसी ना किसी कोने में ताज़ा हैं।



आज हम आपको ऐसी ही स्कूल लाइफ से जुडी कुछ बातों, ऐसी ही कुछ यादों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हे पढ़कर आपको अपने बचपन की याद आ जाएगी।सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त बचपन वाला इतवार अब नहीं आता

बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे, वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे। कोई तो रूबरू करवाए बेखौफ बीते हुए बचपन से.. मेरा फिर से बेवजह मुस्कुराने का मन है..!! 
बचपन में लगी चोट पर मां की हल्‍की-हल्‍की फूँक और कहना कि बस अभी ठीक हो जाएगा! वाकई अब तक कोई मरहम वैसा नहीं बना! बचपन हर किसीका होता है…
बचपन की उन हसीं वादियों में ऐ जिंदगी जब न तो कोई जरूरत थी और न ही कोई जरूरी था बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी… पर समय सबके पास था! आज सबके पास घड़ी है पर समय किसी के पास नहीं! 



मेरे बचपन, मेरा स्कूल
नहीं देखता था घड़ी जब बच्चा था
क्योंकि वक्त उस समय मेरा अच्छा था 
हर समय खेलता था नहीं थी कोई टेंशन
ना थी शेलरी की चिंता न थी कोई पेंशन 
दूर तक साईकिल से घूमने जाता था 
क्योंकि ये सब करने में मजा आता था 
रोज सुबह उठकर वो स्कूल जाना
छुट्टी मांगने के नए बहाने बनाना
पढ़ाई की टेंसन से हिम्मत का टूटना
छोटी छोटी बातों पे माँ से रूठना
स्कूल जाना पूरे रास्ते दोस्तों से बतियाना
इंटरवल में दोस्तों के टिफिन हथियाना
यूनिफार्म पहन के जाने का वो रूल
पहन कर न आने पर प्रिंसिपल का हूल
सोचता था कि कब ख़तम होगा स्कूल
जायेगे हम स्कूल के उस रास्ते को भूल
जिस रास्ते में पड़ता है मेरा वो स्कूल
क्या भूल पाऊँगा वो अतीत पुराना
अब कहता फिरता हु की था वो वक्त सुहाना
अब चाहता हु क्या लौट आयेगा फिर वो जवना


नहीं देखता था घड़ी जब बच्चा था
क्योंकि वक्त उस समय मेरा अच्छा था 
हर समय खेलता था नहीं थी कोई टेंशन
ना थी शेलरी की चिंता न थी कोई पेंशन 
दूर तक साईकिल से घूमने जाता था 
क्योंकि ये सब करने में मजा आता था 
रोज सुबह उठकर वो स्कूल जाना
छुट्टी मांगने के नए बहाने बनाना
पढ़ाई की टेंसन से हिम्मत का टूटना
छोटी छोटी बातों पे माँ से रूठना
स्कूल जाना पूरे रास्ते दोस्तों से बतियाना
इंटरवल में दोस्तों के टिफिन हथियाना
यूनिफार्म पहन के जाने का वो रूल
पहन कर न आने पर प्रिंसिपल का हूल
सोचता था कि कब ख़तम होगा स्कूल
जायेगे हम स्कूल के उस रास्ते को भूल
जिस रास्ते में पड़ता है मेरा वो स्कूल
क्या भूल पाऊँगा वो अतीत पुराना
अब कहता फिरता हु की था वो वक्त सुहाना
अब चाहता हु क्या लौट आयेगा फिर वो जवना




साइकलिंग

जब ख़ुशी प्यार के चंद पलों में नही अच्छे गुण मिलने पर होती थी,
जब डर दिल के टुकड़े होने का नही पेन्सिल की नोख टूटने का होता था,
जब घबराहट नए चेहरों की नही नए शिक्षकों की होती थी,
जब संभलने के लिए एकांत वक़्त नही माँ की बाते होती थी,
बचपन तो बीत गया पर बचपना कभी बितना नही चाहिए ।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।


खो गया है बचपन...?

लेकिन लगता है कि आजकल के बच्चों का 'बचपन' जल्दी बड़े होने या हो जाने  के चक्कर में कहीं खो-सा गया है। इसका कारण तेजी से बदलता समय व माता-पिता की अपेक्षाएं हैं।

माता-पिता चाहते हैं कि बच्चा जल्दी-जल्दी सब कुछ सीख ले। माता-पिता की अपेक्षाओं-तले बच्चों का बचपन खत्म-सा होता जा रहा है। हर माता-पिता को अपने बच्चे को उसका बचपन स्वाभाविक रूप से जीने देना चाहिए। आजकल के बच्चों का बचपन लगता है कहीं खो-सा गया है
















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Saturday, 23 January 2021

लखनऊ की पांच जगह जो खाने के लिए मशहूर हैं

1. लखनऊ के टुंडे कबाब 

लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी बीती सदी के शुरूआत से ही शुरू होती है, जब 1905 में पहली बार यहां अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई।


2. पाया की नहारी 
nahariअवधी खान-पान में नहारी खाने वालों की भी बहुत संख्या है। इस पकवान के लिए चौक स्थित मुबीन और रहीम की नहारी पूरे शहर में लोकप्रिय है। नहार एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है सुबह और इसीलिए यह पकवान सुबह के समय खाया जाता है। लखनवी पाया नहारी की खासियत यह है कि इसे 5-6 घंटों तक धीमी आंच पर पकाया जाता है।


3. इदरीस की बिरयानी 
biryani
 अगर आप मटन बिरयानी के शौकीन हैं तो आपको इस होटल में जरूर खाना चाहिए। इससे स्वादिष्ट बिरयानी आपको पूरे लखनऊ में कहीं नहीं मिलेगी। इदरीस की बिरयानी कि खासियत यह है कि इसे कोयले की आंच पर बनाया जाता है और आग का इस्तेमाल नहीं होता है। यह होटल लखनऊ के कोतवाली चौक बाजार में स्थित है।

4. मक्खन मलाई
malai
 यह मिठाई एक खास किस्म की है और अगर आप सोचें की आपको ऐसी मिठाई और किसी शहर में भी मिल जाएगी तो आप गलत हैं। जी हाँ लखनवी मक्खन मलाई आपको सुबह के समय चौक के गोलदरवाजे पर मिलेगी। यह मिठाई ठण्ड के समय में इसलिए बनाया जाता है क्योंकि मक्खन और दही को ओस में रख कर फिर उसे घंटों फेटा जाता है ताकि नमि पाकर झाग फूलने लगे। अंत में केवड़ा चीनी और इलायची का मिश्रण करके इसे तैयार किया जाता है।

5. प्रकाश की कुल्फी 
kulfi
 स्वादिष्ट खाने के बाद कुछ मीठा खाने का मन करे तो आप अमीनाबाद स्थित प्रकाश की कुल्फी खा सकते हैं। यह खास तरह की फालूदा कुल्फी क्रीम दूध, पिस्ता, काजू, कार्न फ्लोर और केसर के मिश्रण से बनाई जाती है। 1956 में स्थापित प्रकाश कुल्फी ने अपने ग्राहकों के लिए गोमती नगर में भी एक ब्रान्च खोल दी है।






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