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बचपन की सुनहरी यादें और बचपन के खेल, तोतली व भोली भाषा

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चलो, फिर से बचपन में जाते हैं खुदसे बड़े-बड़े सपने सजाते हैं सबको अपनी धुन पर फिर से नचाते हैं साथ हंसते हैं, थोड़ा खिलखिलाते हैं जो खो गयी है बेफिक्री, उसे ढूंढ लाते हैं चलो, बचपन में जाते हैं। बचपन जब हम छोटे थे अक्सर मन में ये खयाल आता था कि हम बड़े कब होंगे, पर आज पुनः उसी बचपन में लौट जाने का दिल करता है. तो चलिये आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के द्वारा पुनः बचपन की यादों में लिए चलते है. हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श  बचपन में… जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे! पर अब… मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई! तोतली